
बोडोलैंड में राजनीतिक तापमान एक बार फिर उबाल पर है, और इस बार बर्तन हिलाया है बोडोलैंड इमाम काउंसिल ने! काउंसिल के अध्यक्ष हाफ़िज़ कटुबुद्दीन ने BJP और AIUDF को सीधे-सीधे ‘सांप्रदायिक ताकतें’ घोषित करते हुए अल्पसंख्यक समुदाय से इन पार्टियों को तौबा करने की अपील कर दी।
कटुबुद्दीन साहब ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “भारत एक खूबसूरत फूलों का बाग़ है, लेकिन कुछ पार्टियाँ इसमें आग लगाने पर तुली हैं। कमल और चाँद अब बगीचे के लायक नहीं!”
बोलिए, बाग़ में बहार लानी है या बारूद?
अल्पसंख्यकों को दिया ‘देसी’ विकल्प: UPPL और BPF
कटुबुद्दीन का कहना है कि UPPL और BPF ही अब BTR में विकास, शांति और सद्भाव का रास्ता दिखा सकती हैं। उन्होंने AIUDF और BJP को एक ही थाली के चट्टे-बट्टे बताते हुए कहा कि दोनों पार्टियाँ धर्म के नाम पर राजनीति कर रही हैं, और इससे भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब खतरे में है।
“ऐसी पार्टियाँ सेकुलरिज़्म की जमीन पर खनन कर रही हैं – और हमें कॉर्पोरेट नहीं, कॉम्युनिटी चाहिए!”
मुद्दे क्या हैं, और मज़ा कहाँ है?
राजनीति में धर्म का तड़का तो पुराना नुस्खा है, लेकिन अब लोग ‘विकास की रेसिपी’ मांग रहे हैं। कटुबुद्दीन की सलाह, “धर्म से पेट नहीं भरता, वोट से भी नहीं — लेकिन स्कूल, सड़क और अस्पताल से ज़रूर भरता है।”
इसलिए अब सवाल ये नहीं है कि हाथ कौन पकड़ रहा है, बल्कि ये है कि हाथ में क्या पकड़ा रहा है?
AIUDF और BJP – एक ही सिक्के के दो पहलू?
AIUDF हमेशा अल्पसंख्यकों की पार्टी मानी गई, लेकिन इमाम काउंसिल का ताज़ा बयान उनकी राजनीति की ‘साख’ पर सवाल खड़े करता है। वहीं BJP पर तो आरोप लगे ही थे, अब एक और धार्मिक संस्था ने ‘सांप्रदायिकता का तमगा’ दे दिया है।

क्या वाकई दोनों पार्टियाँ अल्पसंख्यकों के वोट के पीछे हैं, या फिर पीछे से एक-दूसरे के दोस्त?
“कमल का फूल चाहे जितना खिले, अगर जड़ें सांप्रदायिक हैं, तो खुशबू नहीं, धुआं ही फैलेगा।”
जनता का सवाल: “हम किसे वोट दें?”
कटुबुद्दीन की अपील एक चेतावनी भी है — “सिर्फ मुसलमान होने से कोई नेता आपका हितैषी नहीं बन जाता। और सिर्फ हिंदू एजेंडा चलाने से कोई राष्ट्रभक्त नहीं बन जाता।”
तो जनता अब पूछ रही है — “हमें धर्म चाहिए या दमदार नेतृत्व?”
“सांप्रदायिकता चाहिए या समावेशी विकास?”
नागालैंड में “अब किरायेदार छुपे नहीं, ऐप में दिखेगा हर मेहमान!”